Monday, November 3, 2014

अच्छी कहानी थी।  हंस महाराज  आप कहाँ है ?
काश मेरी ज़िन्दगी में भी कोई हंस  महाराज होते, जो मुझे हमेशा सही और गलत बताते रहते।   तब मुझे कोई फैसला नई लेना पड़ता।  मैं भी चुपचाप उनका कहा मानकर काम करती।

 मेरे अंदर भी आवाज़े होती है ,  बारबार कुछ कहती है।  मगर वो आवाज़े बड़ी धीमे होती है  उन्हें सुन कर भी अनसुना कर देती हूँ शायद यही गलती हर बार करती हूँ।  अगर मैं अपने हंस महराज को सुन सकूँ तो फिर ये यात्रा आसान हो जायेगा।  यात्रा हाँ यात्रा ही तो हैं।  एक ऐसी यात्रा जिसके बारे में मुझे यह पता तो नहीं की मैं कहा जा रही हूँ पर ये जरूर पता हैं की ये यात्रा खुद को समझने की है।  मैं खुद को समझना चाहती हूँ, जानना चाहती हुँ।





राहें कोई भी हो, कोई साथ हो या ना हो, हंस महाराज आपका साथ चाहिए आप कृपया करके मुझसे बात करिये मुझे राह दिखाइए। आपकी बहुत जरुरत  है। 

No comments:

Post a Comment